मेरी गज़ल
लेखिका |
"अश्क़ियां "..
"""""""""""
क्या जरूरी था तुम्हें बे-कसों को जर्ब दे जाना ।
जज्बातों की अहमियत ही नही, दिल मे यूं ही अश्क़ियां बना लेना ।।
मेरी मुश्किलें तो दर्ज है. मेरी हांथो की लकीरों मे ।
पर ढुंढती हूं मैं, फरिश्ते उन लस्करे फकीरों मे ।।
सज़र भी गिर रहे है, छत भी टपक रहे है ।
जिंदगी भी शायद लीज पे, हयातें गिन रहे है ।।
फलक हुआ बेज़ार, बेकस ज़मी पर शायद ।
उकुबत खिज़ा पर देखो, बहारें हंस रहीं हैं ।।
शमशीर हुए रिश्ते, बिस्मिल हुए ज़ज्बात ।
तखल्लुस मे जी रहे है, मुंसिफ की आस मे ।।
अबस हुई है ये जहां उकुबत के दहशत से ।
मुफीद पे चल रही है, देखो फर्जी हैं सियासतें ।।
रिसालतें पे छप रही है, मय्यसर की दास्तां ।
पर स़हरा हुआ है ये मुल्क, ख़ादिम हुए है बेज़ुबान ।।
तकरीह कर रहे है, इंतकाम की आड़ मे ।
पर निबौरी बह रहे है, लोगों के नस -नस मे ।।
मुतमईन नही है, इस मुल्क मे कोई शख्स भी ।
मेहर की तलब मे हर रिश्ता हुआ है मय्यसर ।।
आफताब की चमक में आतीश निकल रहे है ।
कहकशा हुआ धुंधली चश्म -ओ -चिराग मे ।।
"तबस्सुम परवीन "
" अम्बिकापुर ( सरगुजा ) ( छ.ग )
------------------
Post A Comment: